इक बाज़ार लगा मोहब्बत का

इक बाज़ार लगा मोहब्बत का  सोदे बाज़ी जोरों की हुई  किसी को मिला खरीद दार अच्छा  अपनी यारी चोरों से हुई  हमको हुमिन से चुराया उसने  अपना करी खास बातया उसने  लकीरे इन हाथों से फिसल गयी   वक़्त बदला तो वो भी बादल गयी  जिस दिन बिछड़े मर जाऊँगी कहा करती थी  नफरत ही नहीं…

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मुझे उससे मोहब्बत हुई में उसके करीब हो गया

मुझे उससे मोहब्बत हुई में उसके करीब हो  गया   उसे कोई और मिल गया फिर में उसके लिए गरीब हो गया  वादा है मेरी जान मोहब्बत दोबारा करेंगे नहीं गरीबी में पैदा जरूर हुए लेकिन गरीबी में मरेंगे नही 

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खुद से भी न मिल सको,इतने पास मत होना

खुद से भी न मिल सको,इतने पास मत होना  इश्क़ तो करना, मगर देवदास मत होना  देखना चाहना,फिर मांगना,या खो देना, ये सारे खेल है,इनमे उदास मत होना  

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तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ

 तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ  तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ  तुम्हें में भूल जाऊंगा ये मुमकिन  है नही,लेकिन  तुम्ही को भूलना सबसे जरूरी है समझता हूँ 

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कितना बेबस है इंसान जिंदगी के आगे

 kitna bebas hai insan kismat ke aage, kitne door hai sapne haqeeqt ke aage. koi ruki hui dhadkan se poonchho yaar, kitna tadapta hai dil mohabbat ke aage  कितना बेबस है इंसान जिंदगी केआगे, कितने दूर है सपने  हक़ीक़त के आगे.कोई रुकी हुई धड़कन से पूंछों यार, कितना तड़पता है दिल मोहब्बत के आगे 

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