मजबूरियों का नाम हमने शौख रख दिया, हर शौख बदलना ही पड़ा घर के वास्ते.
इक सख्स क्या गया की पूरा काफिला गया, तूफान था तेज पेड़ का जड़ से हिला गया. जब दिल से सल्तनत की ही रानी चली गई, तो क्या मलाल तख्त या किला गया. आँखों से मेरे नींद की आहट चली गई, वो घर से गया घर की सजावट चली गई.इतनी हुई खता लव को लव…