Aawara shayari आवारा शायरी

वो इत्तेफाक से रस्ते में मिल जाए कहीं बस इस शौक ने हमें आवारा बना दिया

अगर पूछना है मेरा हाल तो उन लहरों से पूंछो जिन्हें न समुन्दर ने अपनाया न उन किनारों ने अपनाया जिनकी पहचान ही उससे हुई

खुद की तलाश में हूँ आज कल मुझे आवारा कहने वाले तेरे बात में दम है

मेरा मयार नहीं मिलता में आवारा नहीं फिरता, ये सोंच कर खोना हमें में दोबारा नहीं मिलता

मुझे नशा है तुम्हे याद करने का इसी शौक ने हमें आवारा बना दिया

खता उनकी भी नहीं थी वो क्या क्या करते, हजारों चाहने वाले थे किस किस से वफ़ा करते

मेरी आँखों में एक ख्वाब आवारा है, चाँद भी देखो तो चेहरा तुम्हारा

वो पत्ता आवारा न बनता तो क्या करता, न हवाओं ने बख्सा न टहनियों ने पनाह दी

इतनी तहजीब से न सवारिय साहब हम शायर है आवारा लोगों में आते है

तुझे देखूं तो सारा जहाँ रंगीन नज़र आता है, तेरे बिन दिल को चैन किसको आता है|तुम ही हो मेरे दिल की धड़कन, तेरे बिन यह संसार आवारा नज़र आता है

हालात कर देते हैं भटकने पे मजबूर, घर से निकला हर सख्स आवारा नही होता

मुझे जिस सख्स से मोहब्बत  है उसको मुझ से बड़ी  शिकायत है, में हूँ  मजूर छोड़ दो मुझको तुझे वाकई मुझ से दिक्कत है

आवारा अपने घर का इकलौता सहारा हूं मैं इसीलिए हर एक रिश्ते से किनारा हूं मैं मैं अपने काम में हमेशा मशरूफ रहता हूं इसीलिए लोगों को लगता हैं कि आवारा हूं मैं

मुश्कुराओ मगर इशारा नहीं करना ,किसी गहर के लड़के को आवारा नहीं करना .मोहब्बत को मजाक बनने में देर नहीं लगती सुनो ये मजाक दोबारा नही करना

गम ए  हयात ने आवारा कर दिया हमे वर्ना थी आरज़ू की तेरे दर पे सुबह शाम करते

एक हमें आवारा कहन कोई बड़ा इल्जाम नहीं ,दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते है

खौफ तो आवारा कुत्ते भी मचाते है पर देहशत हमेशा शेर की ही रहती है

उसका प्यार भी आवारा बदल निकला,उमड़ा कहीं,गरजा कहीं और बरसा कहीं

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