150+karan gautam shayari collection|| करन गौतम शायरी कलेक्शन

दिन क्यूँ ढलता है रात क्यूँ आती है, मेरी जुबान पर उसकी बात क्यूँ आती है| और बात प्यार मोहब्बत शादी तक हो तो सही है,न जाने मोहब्बत के बीच ये जात क्यूँ आती है 

ज़माने के ताने पसंद आने लगे है, दर्द भरे गाने पसंद आने लगे है | नए रिश्तों को तो आजमा के देख लिया हमने अब कुछ लोग पुराने पसंद आने लगे है 

ये झूठ है पर इसे हर दफा लिखूंगा में ,पढ़ सके जमाना सारा इतना सफा लिखूंगा में. तुम बदले थे ये कब से सुन रही है दुनिया, आज इस नज्म में में खुद को बेवफा लिखूंगा 

फिजायें हसीं थी आँखों में रवानी थी, मोहब्बत में  मेरी भी बड़ी सी प्यारी कहानी थी | एक सोंच खाए जा रही है आज भी मुझको, में कैसे किसी के प्यार में इतनी दीवानी थी.दीवानी जिसे तेरे आलावा कुछ समझ नही आता 

चुपके से पास आता है रातों में,एक चेहरा बहुत सताता है रातों में. सारा दिन वो ख़ामोशी बस मेरी सुनता है   सुन्कर्र फिर अपनी सुनाता है रातों में .वो शराब को छूने तक नही देता, सिर्फ अपनी आँखों से पिलाता है रातों में, घर वाले यही सोंचकर परेशां रहते हैं आज कल, ये लड़का जाने कहाँ जाता है रातों में. सारा दिन बेशक रूठा रहे मुझ से, बड़ी मोहब्बा से मनाता है रातों में.दिन भर जिसे याद करके सांस ली हमने,फिर उसी का न होना सताता है रातों में 

इन काली अँधेरी रातों में तुझे बेहद याद करता हूँ,में अक्सर अकेले तनहा सा खुद से ही बात करता हूँ. जब खुद से ही बात करता हूँ तो लोग पागल आवारा समझते है, कुछ लोग मेरे लिखने से बहुत नाकारा समझते है. पर में समझता हूँ की वो समझते हाँ क्या, जो बरसते हैं वो गरजते हैं क्या,में बरसता हूँ रोज आँखों से अपनी,गरजता हूँ रोज बातों से अपनी. बैटन में तुझे पाने की रोज फ़रियाद करता हूँ, में अकेले अक्सर खुद से तनहा खुद से ही  बात करता हूँ 

मुसलसल बस एक सवाल का जवाब चाहता हूँ,कही तो लिखा होगा वो हिसाब तालसता हूँ. तालसता हूँ इस जहां में फकत चेहरा,जिसमें तू मिलने आती थी वो ख्वाब तालस्ता हूँ. पर तू क्या तेरा नमो निशाँ तक नहीं दीखता, पहले तो इतना था आज परेशान तक नही दीखता.इतनी नादानी न जाने कैसे हुई तुझ से,मझे तो तू इतना नादान तक नही दीखता.

क्यूंकि कभी जो नजरे मेरा रास्ता देखा करती थी, म्मुझे ही देख कर जीती मरती थी. आज वाही नजरे किसी और के नजरों में देख कर प्यार का इजहार कर रही है तो क्या वो इश्क था  

इश्क करने की तुझ से भूल हो जाए, फिर तेरी मोहब्बत इस कदर फिजूल हो जाए.की बेंथा मोहब्बत कर बैठे तू जिस से, उसे किसी और का प्यार कबूल हो जाए 

एक तारा आसमान से टूटकर आया है मेरा महबूब आज रकीब से रूठा कर आया है. और जो रोया है मेरी बाँहों से लिपटकर वो,ऐसा लगा बरसों बाद कोई कैदी जेल से छूटकर आया है 

मुझे हौसला चाहिए कोई दे सकता हहै, उसके और मेरे बीच फैसला चाहिए कोई दे सकता है.और जिसमें उसका गुजरा हो सके ऐसा घर नही बना पाया आज तक,मुझे एक घोंसला चाहिए कोई दे सकता है 

जिस ढंग में रहा करते थे वो ढंग कहाँ गया, तनहा ही चला हूँ में हर रस्ते पर में तेरे संग कहाँ गया. और जिस दिन रंगुगा खुद को  तेरे रंग में,तो दुनिया कहेगी बदले बदले से लग रहे हो लेखक जी आप का रंग कहाँ गया 

दिन क्यूँ ढलता है रात क्यूँ आती है, मेरी जुबान पर उसकी बात क्यों आती है.

ऐसी कोन मजबूरी आन पड़ी जो लेनी मेरी जान पड़ी,में तो नकाब डाले गया था महफ़िल में वोन पगल लाखों में  भी पहचान पड़ी.

मेरा साथ गवारा नही कोई बात नही, इस घर में गुजरा नही कोई बात नहीं. पर में तो तुम्हारा था जिसके बिना तुम रह भी नहीं सकती थी, क्या कहा में भी तम्हारा नही कोई बात नही 

बेंतहा मोहब्बत की बातें मुझे डर तक ले आती है, तेरी यादें मेरे जिस्म को खींच कर हसर तक ले आती है. और तुझ से कहा है तेज हवाओं में मत जाया कर बाहर, कमबख्त ये हवाएं तेरे खुशबू को संजो कर मेरे घर तक ले आती है 

आज हवाओं में कुछ अलग सी बात नजर आती है,में जब चाँद को देखता हूँ मुझे वो रात नजर आती है. खैर पाना चाहता हूँ तम्हे जिंदगी भर के लिए, पर क्या कृ तुम्हारे बाप को मेरी जात नजर आती है 

मेरी झूठी कसमें खाकर मेरे हक़ में दुआ न कर,दर्दे दिल पूंछ लें मेरे बेशक मुझे छुआ न कर.

तम्हारे शहर में जिस दिन बरसात आती होगी, में जानना चाहता हूँ क्या मेरी याद आती होगी.अब जब किसी से मिलने जाती होगी तुम,क्या आज भी वो सहेली तुम्हारे साथ आती होगी

तुम से नाराज हुआ कैसे जाए, बिन पूंछे तुम्हे छुआ कैसे जाए. अब प्यासे को ही आना पड़ेगा कुँए पे चलकर,भला प्यासे के पास कुआं कैसे जाए 

मुझे प्यारा वो सख्स लगता है, आईने में जिसका अश्क लगता है.तुम भी चूम लो जना देर मत करो, चूमने में कोनसा वक़्त लगता है 

रास्तों में बेशक कितनी भी दूरी रही थी, पर हर पल तू मेरे लिए जरूरी रही थी.आज तक एक सवाल जहाँ से जाता नही मेरे, खुद छोड़ा था या कोई मज़बूरी रही थी 

ये किसकी याद आई हमें आधी रात में, जुबान पे किसकी बात आई आधी रात में.और पेरों तले जमीं खिसक गयी, जब वो रकीब संग आई आधी रात में.आज रोको मत जो होना है होने दो, बड़े दिनों में हाथ आई आधी रात में.और उसके गुलाबी होंठ वो सर्द रात उसके बाद बरसात आई आधी रात में.बाँहों में होते गुए पूंछा उसने कितना कमाते हो, यानी बीच में औकात आई आधी रात में.अगले महीने इक रात फ़ोन आया उसका कहा चिंता की कोई बात नह, तब जाकर सांस में सांस आधी रात में  

  

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