100 दर्द भरी शायरी |आरिफ़ शायरी

 तूफानों से आँख मिलाओ 

सैलाबों पर वार करो

मल्लाहों का चक्कर छोड़ो

तैर के दरिया पार करो


वफादारी की कसमें तोड़ने को भाई जाती है 

यहाँ नफरत की बातें प्यार से समझाई जाती है 

दगाबाजी’गलारेजी ,कमीनापन  रियकारी 

ये सारी खूबियाँ अपनों के अंदर पायी जाती है 


है अंधेरा बहुत अब सूरज निकालना चाहिए 

जैसे भी हो ये मौसम बदलना चाहिए 




जरा से सर्द लहजे से जो इंसान रूठ जाते है 

उनही को मनाने में पसीने छूट  जाते है 

और समझदारी से लेना काम रिश्तों को निभाने में 

ज्यादा खींच लेने से ये धागे टूट जाते है 



तेरा बेवफा होना मेरे रब्ब को भ गया 

देख तूने मुझे छोड़ा और में कहाँ आ गया 


हम जो तूफा से डर गए होते 

रेज़ा रेज़ा बिखर गए होते 

सब्र का घूंट पी लिया वरना 

जाने कितनों के सर गए होते 



में मुटाफिक हूँ तुम्हारी तमाम बातों से 

बाहर हाल दिल तोड़ा नही करते 

और इश्क़ एक ही सख्स से हलाल होता है 

हर किसी से थोड़ा थोड़ा नही करते 


आफ्नो ने ऐसी सेंकी सियासत की रोटियाँ 

आरिफ़ मरो जिगर को ही तंदूर कर दिया 

गुमनाम कोई एक सपेरा था में कभी 

डंस डंस के मुझे सफ़ों ने मशहूर कर दिया 



नफ़रतों के सहर में चालाकियों के डेरे हैं 

यहाँ वो लोग रहते हैं जों तेरे मुह पर

 तेरे और मेरे मुह पर मेरे हैं 



रिश्तों के बाग को हरा रखने के वास्ते 

जितना बदन में खून था सब दें चुका हूँ में 

अगर हो सके तो साँप सेडस वाइए  मुझे 

इंसान के जहर का मजा ले चुका हूँ में 



न पूंछ कितने हैं बेताब देखने के लिये 

हम एक साथ कई ख्वाब देखने के लिये 

में अपने आप से बाहर निकाल कर बैठ गया 

की आज आएंगे एजाज देखने के लिये 



देखा है खानदान को अपने खंगाल के 

दो चार सख्स भी  नही मेरे ख्याल के 

हर कोई मंगता है मुझसे प्यार की सनद 

किस किस को दिखाऊँ कलेजा निकाल के 



अपने हाथों से खुद  दिल जालना पड़  गया 

क्या बताऊँ कितना महंगा दोस्तना पड़ गया  

पलकों पे रखते हो अपने आप जिन कमज़ारफ़ों को 

आपके खातिर उन्हे भी मुह लगाना पड़  गया 


की अभी चलता हूँ रास्ते को में मंज़िल मान लूँ कैसे 

मसीह दिल को अपनी ज़िद्द का कातिल मान लूँ कैसे 

तुम्हारी याद के आदिम अंधेरे मुझको घेरे हैं 

तुम्हारे बिन जों बीते दिन उन्हे दिन मान लूँ कैसे 


में उस से ये तो नहि कह रहा की जुड़ा न करे 

मगर वो कर नहीं सकता तो फिर कहा न करे 

वो मुझे जैसे छोड़ गय था मुझे उसे भी कभी 

खुदा करे की कोई छोड़ दे खुदा न करें 


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