100+ दर्द भरी शायरी ||गलत फहमी में रह जाने का सदमा कुछ नही

तेरे  रोने की खबर रखतीहै आंखे मेरी 

तेरा आँसू मेरे रुमाल में आ जाे

शराबियों के लिए में खाना बनाऊँगा में 

उसकी गली में मेकअप की दुकान बनाऊँगा में 

सिंगल लड़कों का दर्द मुझसे देखा नही जाता 

अब भाभियाँ पटाने की दवा बनाऊँगा में 

करोगे याद उस गुजरे जमाने को 

तरस जाओगे हमारे साथ एक पल बिताने को 

फिर आवाज़ दोगे हमें बुलाने को 

और हम कहेंगे की दरवाजा नही है कबर से बाहर आने को 

ऐसा कोई दिन कोई वक़्त कोई पल नही जाता 

जिसमें मुझे तेरा ख्याल नही आता 

नींद जैसे कोई  दुसमानी हो गयी 

सीने में साँसों की कमी सी हो गई 

अब कोई और छूएगा यहीं सोच कर पल पल मारता रहता हूँ 

नज़्में लिखता हूँ और उसे रात भर पढ़ता रहता हूँ 

अगर किस्मत से किसी रास्ते पे टकराएँगे 

न देखेंगे तुम्हें न अपना चेहरा दिखाएंगे 

किसी अंजान मुसाफिर की तरह

 तुम भी गुजर जाना हम भी गुजर जाएंगे 

कुछ बात तो है तेरी बातों में

 जो बात यहाँ तक आ पहुंची 

हम दिल से गए दिल तुमपे गया 

और बात खुदा तक जा पहुंची 

धूप पड़े उस पर तो तुम बादल बन जाना 

अब वो मिलने आए तो उसे घर ठहरना 

तुमको देखते देखते गुजर रही है 

मर जाना मागर किसी गरीब के काम न आना 

फैसला जो कुछ भी हो मंजूर होना चाहिए 

इस्क हो या जंग हो भरपूर होना चाहिए 

भूलना भी है जरूरी याद रखने के लिए 

पास रहना है तो थोड़ा दूर होना चाहिए 

जो बचपन से पिये उसे बुढ़ापा आ नही सकता 

बुढ़ापे में कोई भीआँख भी दिखला नही सकता 

मिले माया से मुक्ति शक्ति वो बोतल के पानी में 

बुढ़ापा आए क्या जब टिकट ही कटता जवानी में 

 कि तुम्हारे बाद अब तुम्हारे यादों की गुलामी करते हैं 

जिंदा रह कर हम जिंदगी पर मेहरबानी करते हैं 

की अब जब तक जिएंगे तुम्हारे यादों के सहारे रहेंगे 

तुम तो जाकर गैरों की हो गई हम तो तुम्हारे थे तुम्हारे रहेंगे 

खुद को जो इतना हवादार समझ रखा है 

क्या हमें रेत  की दीवार समझ रखा है 

हमने किरदार को कपड़ो की तरह पहना 

तुमने कपड़ो को ही किरदार समझ रखा है 

गलत फहमी में रह जाने का सदमा कुछ नहीं 

वो मुझे समझा तो सकता था की ऐसा कुछ नहीं 

इश्क़ से बच कर भी बंदा कुछ नही होता मागर 

ये भिसच है इश्क़ में बंदे का बचता कुछ भी नहीं 

फिकर कर दिखा मत 

कदर कर जाता मत 

तू चाहता है  दोस्ती बनी रहे 

मोहब्बत कर बता मत 

पास मेरे बैठा था वो कितना करीब था 

वो अपना सा लगने वाला किसी  और का नसीब था 

लाख जतन किए लाख कोसीसे की फिर भी तुमको न प सके 

बिन मांगे ले जाने वाला तुझे कितना खुस नसीब था 

 घर की दीवार पर नाखून से लिखेंगे 

तेरी बेवफ़ाई हम सुकून से लिखेंगे 

खत स्याही से लिखे तो फाड़ देती हो 

इस बार क्झत तुम्हें खून से लिखेंगे 

तेरा चुप रहना मेरे जहां में क्या बैठ गया 

तुझे इतनी आवाज़े दी की गला बैठ गया 

यूं नहीं है फकत में ही उसे चाहता हू

जो भी उस पेड़ की छाव में गया बैठ गया 

उसकी मर्जी वो जिसे पास बैठा ले अपने 

ईसपे क्या लड़ना फला मेरी जगह बैठा गया 

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