ये किस मुकाम पे सूझी तुझे बिछड़ने की अब तो जाके कहीं दिन सवरने वाले थे
.तू हम उन दिनों में क्यूँ न मिला जब हमें शौक थे सवरने के. हमने जीने की उम्र में सरवर पाल रखे हैं शौख मरने के
ये कच्ची उम्र के प्यार भी बड़े पक्के निशाँ देते है .आज पे कम ध्यान देते है बहके बहके ब्यान देते है .उनको देखे हुए मुद्दत हुई और हम अब भी जान देते है
नींद चुराने वाले हमसे पूंछते है,तुम सोते क्यों नहीं .आपको इतनी ही फ़िक्र है तो हमारे होते क्यों नहीं
उनकी सोभत में गए संभले दोबारा टूटे, हम किसी सख्स को दे देके सहारा टूटे . ये अजीब रस्म है ज़माने की बिल्कुल समझ न आई ,की प्यार भी हम ही करे दिल भी हमारा टूटे
नखरे उठा रहा हु तुम्हारी तलाश के रुकता नहीं रास्ता वीरान देखकर ,सोंचा नहीं था कभी मैंने तेरे जैसा सख्स मुंह फेर लेगा मुझे परेशान देखकर
की मुझे फर्क पड़ गया किसी की बातों से किसी ने धज्जियां उड़ाई है मेरे जज्बात की किसी की जुबान ने ऐसे जख्म दिए हैं अब मुझे जरूरत नहीं किसी के साथ की
मेरी कहानी सुनेंगे तो कभी प्यार नहीं करेंगे ,मोहब्बत पे कभी ऐतबार नहीं करेंगे.तुम मेरे जनाजे पे थोडा वक़्त से आना,क्योंकि मुझे दफनाने वाले मेरी तरह तेरा इंतज़ार नहीं करेंगे