इक सख्स क्या गया की पूरा काफिला गया, तूफान था तेज पेड़ का जड़ से हिला गया. जब दिल से सल्तनत की ही रानी चली गई, तो क्या मलाल तख्त या किला गया.
आँखों से मेरे नींद की आहट चली गई, वो घर से गया घर की सजावट चली गई.इतनी हुई खता लव को लव से छू लिया, इन शहद से होंठो की तरावट चली गई
हालात बदलने से ये दस्तूर हो गए, साझा थे जितने ख्वाब चकनाचूर हो गए. तेरा भी किसी बाँह के घेरे में घर हुआ, हम भी किसी की माँग का सिंदूर हो गए.
किस्मत की बाजियों पर इख़्तियार नही है, सब कुछ है ज़िंदगी में मगर प्यार नही है. कोई था जिसको याद कर के गा रहे हैं हम, आँखों को अब किसी का इंतज़ार नही है
कांटे बना रहे है है या गुल बना रहे है, कुछ लोग कहीं काग को बुलबुल बना रहे|तुम रास्तों को खाई में तब्दील कर रहे, हम लोग उन्ही खाईंयों पर पुल बना रहे|
मुश्किल ही संभलना ही पड़ा घर के वास्ते, फिर घर से निकलना ही पड़ा घर के वास्ते|मजबूरियों का नाम हमने शौख रख दिया, हर शौख बदलना ही पड़ा घर के वास्ते
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जो याद तेरे पाँव की जंजीर बनी है, वो याद मेरे हाथ की लकीर बनी है. पानी जो उसी चाँद पर ढूँढे नही मिला, पानी में उसी चाँद की तस्वीर बनी है
रोने पे आयेगी तो ये हर बात रोयेगी, डोली लूटी है आज ये बारात रोयेगी. ये इश्क मेरा आज से तेरा तो हुआ पर, हर बार तुम्हें देखकर खैरात रोयेगी.
पत्थर की चमक है न नगीने की चमक है, चेहरे पर सीना तान के जीने की चमक है. पुरखों को विरासत में हमें कुछ भी न मिला, जो दिख रही है खून पसीने की चमक है.
नयी भीड़ चाहिए कोई तन्हा पसंद है,अब सुख हो या हो दुःख हमें अपना पसंद है ,आँखों को ख्वाब आ रहे थे फिर गुलाब के,दिल ने कहा अब हमें कांटा पसंद है