पहाड़ों से इक आवाज़ आई थी ये कहानी दादी ने सुनाई थी

 पहाड़ों से इक आवाज़ आई थी

ये कहानी दादी ने सुनाई थी

एक परी रहती थी बादलों में

एक लड़का गिना जाता था पागलों में

कहता था बादलों से कोई आने वाला है

जमीन पर उतार कर मेरी साँसों में सामने वाला है

उसे बिना देखे ईझर करता हूँ

कहता था की में उसे खुद से भी ज्यादा प्यार करता हूँ

इतना सब सुनकर परी ने जमीन पर आने की ठानी

माँ ने रोका बाबा ने समझाया पर किसी की एक न मानी

रात का वक़्त चारों तरफ अंधेरा था

रोशनी के नाम पर बस चंद का बसेरा था

अब चाँद से याद आया की चाँद की रोशनी भी कम पड़ जाएगी

जब वो उतर कर मेरी छत पे आएगी

तो कहानी ने नया मोड़ लिया

परी ने प्यार के खातिर ख्वाबों से रिस्ता तोड़ लिया

कहीं में सपना तो नहीं देख रहा ये मेरे सामने कौन खड़ा है

कुछ बोलता क्यूँ नहीं इस तरह चुप्पी साधे मौन खड़ा है

फिर उसने कहा माँ बाबा घर बार सब छोड़ दिया मैंने

बहुत ख्वाब सजाये थे काफी ऊंचा उड़ना था सब तोड़ दिया मैंने

आज से मेरी किस्मत के ताले की चाभी तुम हो

बैचैन सी मेरी धड़कन की बेताबी तुम हो

मेरा सुख दुख हसना रोना सब तुम पर निर्भर करता है

चेहरे की खिलखिलाहट या पलके भिगोना सब तुम पर निर्भर करता है

उसके बाद दुनिया बदली वक़्त बदला बदला ये संसार सारा

प्यार की कसमें वादे झूठे निकले झूठा निकला ये प्यार सारा

अब मोहब्बत से नही उसे गलियों से उसे पुकारता है

गलियों से बस नहीं चलता तो हाथों से मारता है

दर्द में रोती कराहती किसे पुकारती वो

अफसोस होता फैसले पर जब भी सीसे में खुद को निहारती वो

उसकी कमियाँ निकलता है हर वक़्त काफी तो खुद को दोष दें

इतना गुस्सा भरा है तेरे अंदर काफी तो खुद को चोट दे

मेरी ये नज़्म सुनकर मोहब्बत से इंसाफ कर देना

गलतियाँ इंसान से होती है तो उसे मुस्कुराकर माफ कर देनादेना

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