गलियों गलियों में मुझे ढूँढो गी तो याद आऊंगा

 गलियों गलियों में मुझे ढूँढो गी तो याद आऊंगा ,जब भी शहर को लौटोगी तो याद आऊंगा, तुम मेरी आंख के तेवर ना भुला पाओगी  अनकही बात को समझूंगी तो याद आऊंगा, हम उन्हें खुशियों की तरह दुख भी इकट्ठे देंगे,  सपने अजीज को पल्टोगे तो याद आऊंगा,इस जुदाई में तुम अंदर से बिखर जाओगी, किसी बाजुओं को देखोगी तो याद आऊंगा। इसी अंदाज में होते थे मुनातम  मुझसे खत किसी और को लिखोगी तो याद आऊंगा। मेरी खुशबू तुम्हें खुलेगी गुलाबों की तरह तुम अगर खुद से ना बोलोगी तो याद आऊंगा, सर्द रातों के महकते हुए सन्नाटे में यह किसी फूल को चुमोगी तो याद आऊंगा, आज तोमहफ़िलें यार हाँ पे हूँ मगरूर बहुत जब कभी टूट के बिखरोगी तो याद आऊंगा, अब तो ये अश्क में होठों से चुरा लेता हूँ.और हाथ से खुद उन्हें पूछोगी तो याद आऊंगा, शाल पहनायेगा अब कौन दिसंबर में तुम्हे? बारिशों में कभी भिगोगे तो याद आऊंगा। आज से आयेंगे जीवन में तुम होंगे नाडार। किसी दीवार को थामोगी तो याद  आऊँगा, इसमें शामिल है। मेरे वक्त की तारीकी। तुम सफेद रंग जो पहनोगी तो याद आऊंगा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top