अलमारी खोला तो खत उस के पुराने निकल आये

               

 अलमारी खोला तो खत उस के पुराने निकल आये,फिर से मेरे चेहरे पे ये दाने निकल आए,माँ बैठ के तकती थी जहाँ से मेरा रस्ता,मिट्टी के हटाते ही ख़ज़ाने निकल आए, मुमकिन है हमें गाँव भी पहचान न पाए,बचपन में ही हम घर से कमाने निकल आए,ऐ रेत के ज़र्रे तेरा एहसान बहुत है,आँखों को भिगोने के बहाने निकल आए,अब तेरे बुलाने से भी हम आ नहीं सकते,हम तुझ से बहुत आगे ज़माने निकल आए,एक ख़ौफ़ सा रहता है मेरे दिल में हमेशा,किस घर से तेरी याद न जाने निकल आए

Shubham Bharti

हेल्लो दोस्तों मेरा नाम शुभम भारती है में पिछले 3 सालों से ब्लोगिंग का काम कर रहा हु में शायरी के प्रति रूचि है इसलिए में आप सबको भी शायरी व् quote से एंटरटेन करना चाहता हूँ

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